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प्र वाच॒मिन्दु॑रिष्यति समु॒द्रस्याधि॑ वि॒ष्टपि॑ । जिन्व॒न्कोशं॑ मधु॒श्चुत॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra vācam indur iṣyati samudrasyādhi viṣṭapi | jinvan kośam madhuścutam ||

पद पाठ

प्र । वाच॑म् । इन्दुः॑ । इ॒ष्य॒ति॒ । स॒मु॒द्रस्य॑ । अधि॑ । वि॒ष्टपि॑ । जिन्व॑न् । कोश॑म् । म॒धु॒ऽश्चुत॑म् ॥ ९.१२.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:12» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:39» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (समुद्रस्य अधि विष्टपि) “समुद्रवन्ति यस्मादापः स समुद्रः” जो परमात्मा अन्तरिक्षलोक के मध्य में (मधुश्चुतम् कोशम्) सब प्रकार की मधुरताओं के सिञ्चन करनेवाले कोश को (जिन्वति) बढ़ाता है, (इन्दुः) वही परमैश्वर्यसम्पन्न परमात्मा (वाचम् प्र इष्यति) वेदवाणी की प्रेरणा करता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के नियम से समुद्र अर्थात् अन्तरिक्ष में जलों का सञ्चय रहता है, क्योंकि समुद्र के अर्थ ये हैं, जिस में जलों का भली-भाँति सञ्चार हो अर्थात् इतस्ततः गमन हो, उसको समुद्र कहते हैं। अन्तरिक्षलोक में मेघों का इतस्ततः गमन होता है, इसलिये मुख्य नाम समुद्र इन्हीं का है। तात्पर्य ये है कि जिस परमात्मा ने इन विशाल नियमों को बनाया है, उसी परमात्मा ने वेदरूपी वाणी को प्रकट किया है ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (समुद्रस्य अधि विष्टपि) यः परमात्मा अन्तरिक्षमध्ये (मधुश्चुतम् कोशम्) सर्वविधमधुरताया वर्षितारं कोशं (जिन्वति) वर्धयति (इन्दुः) परमैश्वर्यवान् स एव (वाचम् प्र इष्यति) वेदवाणीः प्रेरयति ॥६॥